बदलाव

मौसम बदले, वक़्त बदला, हम भी बदल गए 
ख्वाहिशें बदली, ख़्वाब ओ अंदाज़ बदल गए 
यूँ सभी कहते रहे.... ख़त्म ज़िन्दगी, ख़त्म हम !
पल-पल नयी ज़िन्दगी के...मायने बदल गए 
       ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त'  ✍️ 

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दिल हारे जान  हारे, गए हार संसार 
हार-हार ही जीते हम, जीता अपना प्यार 
       ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त'  ✍️ 

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अब ऐसा भी नहीं इस जहाँ के नहीं हम तुम 
पर इस जहाँ के जैसे हरगिज़ नहीं हम तुम 
       ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त'  ✍️ 

आँसू

आँसू वो शब्द हैं जो लिखे जाने चाहिए 
पढ़े जाने चाहिए समझे जाने चाहिए 
माना आँसू पौंछना, इंसानियत है मगर 
कारण आँसुओं का मिटाया जाना चाहिए 
             ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त'  ✍️ 

चुनौती

भान नहीं नारी को अपने अधिकारो का,
 समझे ये पुरुष की बपौती है 
और पता होने पर उन्हें माँगना ,हासिल करना, 
बड़ी कड़ी चुनौती है 
               ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️ 

वक़्त की आँच

रुत बदलती रहीं उम्र ढलती रही 
दिल सिसकता रहा रूह तड़पती रही
झूठ में, सॉंच में, वक़्त की आँच में 
मोम के बुत की तरह पिघलती रही 

ज़िन्दगी तू बता, क्या है मेरी खता 
क्यों इस तरह रंग तू बदलती रही

खुशियों की आस में प्यार की प्यास में 
दर्द का क़तरा-क़तरा सटकती रही

मौन के शोर में दर्द की हिलोर में 
ज़िन्दगी करवटें ही बदलती रही 

झूठ में, सॉंच में, वक़्त की आँच में 
मुक्ति की चाह में, 'मुक्त' बँधती रही  
             ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त'  ✍️ 

अवसान

माँ का दुनिया से जाना न इतना आसान 
रब को भी करनी पड़े मेहनत घमासान 
इतने जुड़े बच्चों से माँ के दिल के तार  
मोह-माया से विलग कैसे होय अवसान 
               ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️ 

फीस

बिस्तर पर पड़ी माँ अपने दर्द में कभी कभी इतना डूब जाती है कि उसे अपने बच्चों के प्रयास और परेशानियाँ दिखाई नहीं देते। वो दुर्भावना से ग्रस्त हो जाती है ,और बच्चे उसे इस स्थिति में से निकालने की कोशिश में परेशान ! ऐसा ही कुछ देखा तो लिखा-----(अपवाद हमेशा ही होते हैं )

है पीर सहन से परे उठती ह्रदय में टीस 
पाषाण ह्रदया मरणासन्न माँ, देती दुराशीष 
कैसे बाँटें दर्द को, बच्चे हुए बेचैन 
दुःख-अवसाद बच्चों को हुई ममत्व की फीस 
               ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️ 

गद्य गीत

  💐💐 पढ़ियेगा ज़रूर बहुत कुछ सोचने पर करेगा मज़बूर 💐💐
             "तो क्या हुआ "
एक था किसान जी, चलता था सीना तान जी   
देखा क्यों आजकल, झुकी कमर किसान की  
बात ये पता चली ,हवा चली गली-गली 
उसका बेटा फौजी था, देशसेवा करता था 
देश की मिट्टी का, क़र्ज़ अदा करता था 
घर में थी पत्नी, बहू, और एक पोता भी  
ठीक चल रहा था सब, कुछ नहीं परवाह थी 
वक़्त ने ढाया कहर, बिखर गयी शाम-ओ-सहर  
बेटे की मौत की खबर, सीना कंधे झुका गयी 
करुण क्रंदन ह्रदय में, आँसुओं की बाढ़ थी 
देखते ही देखते,  खुशियाँ सारी लुट गयी
बेवा बहू और बेबस माँ, देख कर सिहर गयीं 
वो पूछता था डाल-डाल, कहाँ गया तू मेरे लाल?   
तू तो सहारा था मेरा, तेरी कमी है सालती 
तभी सुनो जी ध्यान से! लाश आयी सम्मान से !
तिरंगे में लिपटी हुई ,सलामी दी सबने शान से
बड़े सम्मान से उसका अंतिम संस्कार किया गया 
सभी ने उसे शहीद का पिता, कह सम्बोधित किया 
अब उस परिवार की बहुत बड़ी पहचान थी 
मीडिया और अखबारवालों की, आ गयी बाढ़ थी 
और इस सम्मान ने, कुछ पल को, मरहम रख दिया 
नम आँखें थी मगर था, सीना गर्व से तना हुआ 
उसे लगा देश के लिए की, कुर्बानी व्यर्थ न जायेगी 
देश की मिट्टी उस के लाल को, कभी भुला न पाएगी 
गम के अँधेरों में यूँ ही,, एक महीना गुज़र गया 
कागज़ी कार्यवाहियों, का काम सर पे आ गया 
ज्यादा पढ़ा-लिखा न था, अधिकारियों से क्या करता बात?
ऑफिसों के रोज़ वो, चक्कर लगाता रहा 
हर कोई कागज़ों में, कमी बताता रहा ,
उनमे से एक बेशर्म था, उसने रिश्वत माँग ली 
दिन का सुकून रातों की नींद सब बेटा ले गया 
देश और समाज जो थकता नहीं था कहते यही 
देशभक्ति  की कीमत सदा ही अमूल्य रही 
इसी पशोपेश में, कंगालियों के वेश में 
खींचता रहा वो दिन, बूढ़ा हुआ वो दिन-ब-दिन 
एक दिन मन में ठानकर वो ऑफिस गया जानकर
अधिकारी से बोला वो शायद नहीं तुम जानते  
शहीद था बेटा मेरा ,देशभक्त था बेटा मेरा 
उसने पलट के जो कहा "तो क्या हुआ "तो क्या हुआ 
यहाँ बहुत शहीदों की है फाइलें अटकी हुईं 
उसका जो कहना 'क्या हुआ' सीधा दिल में उतर गया 
सीना चीयर कर गया वो जार जार कर रोया 
अब कहाँ जाऊं मैं किस तरह निभाऊं मैं 
बेटा मेरा चला गया अब कैसे ज़िन्दगी चलाऊँ मैं 
थके-थके से थे कदम बुझा बुझा सा उसका मन 
एक और वाक़या घर में इंतज़ार उसका कर रहा 
जैसे घर में रखा कदम, पोता भाग आया एकदम 
दादू ! मुझे फौज में जाना है,पिता ने देश के लिए दी जान 
मुझे भी पिता की तरह, फ़र्ज़ अपना निभाना है 
सन्न हो गया बूढ़ा बाप, दहलीज़ पर बैठा उदास 
शून्य में निहारता रहा, हवाओं मे शब्द गूंजते रहे
 "तो क्या हुआ " "तो क्या हुआ" 
कहाँ गया वो मीडिया कहाँ गए अखबार वो 
बड़े बड़े वादे थी कर रही सरकार जो 
अकेला था भटक रहा कोई नहीं है साथ अब 
खोखले वादों पे टिकी ये देश की सरकार जब  
ऑफिसों में अटकी हुई फाइलें हज़ार हैं 
शहीदों के परिवारों की हालत खराब हैं 
ये सत्यकथा मैंने कही क्या आप भी कहेंगे यही 
तो क्या हुआ ! तो क्या हुआ !
         ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️