आज पाया प्रसाद मैंने अपनी अच्छाइयों का ऐसा लगता है जीवन की बगिया में खिल गए फूल काँटों के ऐसा लगता है सोचा न हो आपने होगा ऐसा भी ,हो जाए तो कैसा लगता है अपनी गलतियों की सजा दूँ खुद को ऐसा लगता है शराब का सरूर घुल गया हवाओं में होश नहीं रहेगा अब ऐसा लगता है मान सम्मान की नहीं हक़दार मैं होगा अपमान ही क्यूँ ऐसा लगता है कैसी है आग तन बदन में ख़त्म हो रही हूँ शायद ऐसा लगता है काश एक भी सांस न आये अब घुट रहा है दम ऐसा लगता है अपने लिए सच्चा प्यार दिखे आँखों में मरते वक़्त भी यही चाहना कैसा लगता है
Month: February 2021
कुछ दिन और जिया जाए
यूँ लगा! रहने लायक नहीं ये दुनिया लेकिन तू फिर मुस्कुराया तो लगा कुछ दिन और जिया जाए दिलोदिमाग जानते हैं ,भ्रम है तेरा प्यार चलो इस भ्रम में कुछ दिन और जिया जाए दिल में बेचैनी हो चाहे जितनी ,सब्र रख कुछ दिन और जिया जाए तुम न भी चाहो तो कोई बात नहीं कुछ दिन और जिया जाए गम और ख़ुशी लहरें है समंदर की सुख दुःख में तेरा साथ निभाया जाए शायद खुशियां छिपी हैं इसी शर्त में हर हाल में तेरे सुर में सुर मिलाया जाए .
कान्हा
चले आओ मेरे कान्हा जीवन में रंग भर दो इस तुच्छ से जीवन को प्रभु पल में सफल कर दो चले आओ मेरे कान्हा....... तुम बंसी ऐसी बजाओ मैं सब सुख दुःख बिसराऊँ अंतिम श्वास में अपने बस तुझमे ही खो जाऊं चले आओ मेरे कान्हा..... ये दुःख की रात है लम्बी और सुख की सुबह है दूर ये मत कहना मेरे कान्हा कि तुम भी हो मजबूर चले आओ मेरे कान्हा.... मेरी पूजा अर्चन प्रार्थना सब आज सफल कर दो भ्रमजाल ये माया का कटे प्रेम रंग भर दो चले आओ मेरे कान्हा.... ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त'✍️
दर्देदिल
दर्देदिल कुछ इस तरह उभर आया आसुओं का सैलाब उमड़ आया चाहा था जिंदगी में क्या मैंने देखिये आज मैंने क्या पाया दिल का मिट जाता हर मलाल कैसे ऐसा निश्छल सा प्यार न पाया दर्देदिल कुछ इस तरह तेरे संग एक उम्र गुजार दी हमने ना पाया प्यार ना विश्वास पाया देखा है आइना भी जब हमने खुद को खुद से ही जुदा पाया दर्देदिल कुछ इस तरह घाव अपने ही दिया करते हैं ये बावरा दिल नहीं समझ पाया अपने दिल को जो टटोला हमने उसको यूँ ही बावफ़ा पाया दर्देदिल कुछ इस तरह
डर
आइये ये सोचे क्यों हर किसी से डरते हैं हमारे पास जो भी है उसके लुट जाने से डरते हैं अंत अहम् का जो चाहा था हमने और बड़ा हो कर वो सामने खड़ा है खुद से बड़ा ना हो जाए बस इस बात से डरते हैं हो गए समझदार और गंभीर भी हम दुनियादारी में मर जाए न मासूमियत हमारी बस ऐसी तरक्की से डरते हैं आरजू और जुस्तजू ख्वाहिशों का समंदर है दिल रेत का घरोंदा है कहीं टूट जाए न लहरों से डरते हैं आइना कहे अच्छे हैं अपने कहे अच्छे हैं अतीत बदल सकते नहीं भविष्य से डरते है आइये ये सोचे क्यों क्यों हर किसी से डरते हैं
अहम्
लड़ना है अपनी कमियों से अब तो बस जीतना है मुझे जानती हूँ अर्थहीन है कुछ भी पाना तो पाने की जिद क्यों है मुझे ये अकेलापन वरदान है प्रभु का ये रोज आइना दिखाए मुझे शायद माफ़ ना कर पाना है बहुत बड़ी कमी ये ही तनहाई देती है मुझे अहम् को भुलाकर भूल पाऊं सब कुछ तो ही शान्ति मिलेगी मुझे व्यव्हार में उतर पाए ज्ञान अगर मिल जाएगा सबका प्यार फिर मुझे मैं अपने लिए इतनी महत्वपूर्ण क्यों हूँ जब किसी की चाहत मिली ना मुझे आ सिर्फ प्यार से चले दो कदम भूल कर हम सब अपना अपना अहम् ना रहे तेरा तुझे ना रहे मेरा मुझे
भटकाव
कोशिशें व्यर्थ हैं तेरी न कुछ जानता है तू, भटकने की आदत हो तो घर बना नहीं पाते ।
काश
मेरी ही कमियाँ मुझको हैं सताती काश दिल दुखाने वालों को माफ़ कर पाती भूलती हूँ जाने कितनी बातें मैं हर दिन काश वो सब बातें भूल पाती प्यार पाने को सबका मैं इर्द गिर्द घूमती हूँ काश अपने लिए भी कुछ तो कर पाती समय और सामर्थ्य सब कुछ है पास मेरे काश मैं इसका सदुपयोग कर पाती आलस्य और सोच में गुजारती थी हर दिन काश बाकी दिनों में कुछ सार्थक कर पाती अनुभव से इस उम्र में बदल गयी सोच काश मैं खुद पर ज्यादा समय लगाती
बेवफाई
उसकी बेवफाई ने रुख जिंदगी का मोड़ दिया मुस्कुराने लगे हम सिर झुकाना छोड़ दिया
दुनिया
दुनिया क्या खूब नजरअंदाज करती है तू मतलब निकल जाए तो कहाँ बात करती है तू याद नहीं तुझे मेरा पहले का किया और कहती है आज भी करूँ ? क्या बात करती है तू !! मैं तो समझती थी समझदार तुझे पर कालिदास है तू अपनी ही शाख पे वार करती है तू मैं तो मीठा ही बोलूं शर्त है तेरी कठोर व्यवहार से बारबार घाव देती है तू मेरा दिल मोम था पत्थर का हुआ सबकुछ बदल रहा है कम्बख्त नहीं बदलती तो सिर्फ तू कम्बख्त नहीं बदलती तो सिर्फ तू