आज पाया प्रसाद मैंने अपनी अच्छाइयों का ऐसा लगता है जीवन की बगिया में खिल गए फूल काँटों के ऐसा लगता है सोचा न हो आपने होगा ऐसा भी ,हो जाए तो कैसा लगता है अपनी गलतियों की सजा दूँ खुद को ऐसा लगता है शराब का सरूर घुल गया हवाओं में होश नहीं रहेगा अब ऐसा लगता है मान सम्मान की नहीं हक़दार मैं होगा अपमान ही क्यूँ ऐसा लगता है कैसी है आग तन बदन में ख़त्म हो रही हूँ शायद ऐसा लगता है काश एक भी सांस न आये अब घुट रहा है दम ऐसा लगता है अपने लिए सच्चा प्यार दिखे आँखों में मरते वक़्त भी यही चाहना कैसा लगता है