हमसफ़र

कभी लगे बिखरी 
 कभी लगे संवरी सी हूँ 
 तेरा साथ पा के ऐ हमसफ़र
 उलझी भी कुछ 
 सुलझी भी हूँ 

मेरा काल्पनिक मित्र

वो खालीपन है शून्य सा
प्यार है अनन्य सा
साह्स वो अदम्य सा
और रूप वो सुरम्य सा  
 आदि भी है और अंत भी 
 और प्रश्न अनंत भी 
 आकाश भीतर
 आकाश बाहर भी
प्यार भीतर 
प्यार बाहर भी 
वो ही हर तरफ छिपा हुआ
और हो रहा उजागर भी। 
 क्या कहूं कुछ तो है 
 वो कमजोरी  भी है 
और ताकत भी

बेजुबान

बेजुबान हो गए हैं हम, 
 शायद हसरतें दम तोड़ जाएँ। 
 कुछ बोले तो मर जाएगा रहा सहा रिश्ता,  
 न बोले तो धड़कनें न रुक जाएँ। 

नासमझ

चाहे मान खुदा तू खुद को मगर ,
 तू औरों को इंसान समझ ।  
 जो पूजें तुझे शामों सहर, 
 उन भक्तों का तू मान समझ। 
 तू माना है दीया लड़े अंधेरों से,
 पर बाती की औकात समझ ।  
 कोई मांग रहा गर दर पे तेरे, 
 तुझे माना है धनवान समझ। 
 माना है बहुत तू ताकतवर ,
 तेरी ताकत वो है नादान समझ ।  
 नहीं अकड़ शोभती है तुझपर, 
 हैं भक्त तो है भगवान समझ ।  
 पुण्यों का फल तूने पा ही लिया ,
 इन पापों का तू भार समझ। 
 हर तरफ है हाहाकार अभी,
 इसे आहों का तूफ़ान समझ। 
 तू आसमान है मैं जर्रा हूँ  ,
 इसे जर्रे की ललकार समझ।

खुद से बेहतर

हम तो पहले ही से आपको ,
 खुद से बेहतर समझते हैं।
 बड़प्पन कम न करो अपना,
 हमें कमतर बताने में।।
 दीवाना है दिल मेरा,
 अपना समझता है आपको 
 अपनापन यूँ कम न करो,
  हमारी कमियां गिनाने में।।
 गुजर जाएगा बुरा वक़्त भी, 
 खुश रहो न तुम ।  
 तुम्हारा उतरा हुआ चेहरा,
 लगा है दिन गिनाने में।।
 आसान है शब्दों से,
 किसी को चोट पहुंचना। 
 गहरी चोट है कितनी,
 समय लगेगा समझ पाने में।।
 अवधारणा बनाना दुश्मनी निभाना, 
 हमारा काम हो नहीं सकत। 
 तुम ही भूल बैठे सब ,
 अहम् को सजाने में।। 

औरत

क्या कुछ गुजर गया उसपर 
 बता रही आँखों की वीरानी ,
 पर उसकी मुस्कराहट बोली 
 झेल गयी वो हर लहर तूफानी ।

दिल मेरे

दिल मेरे दिल मेरे काहे शोर करे 
 भोर से रात तक ,रात से भोर तक 
 सिर्फ शोर सिर्फ शोर सिर्फ शोर करे
 दिलो -दिमाग अब मेरे काबू में नहीं 
 जंग ये काहे को रोज रोज करे
 दिल------
 कब तलक साथ दे सांस और धड़कने  
 दिल कहे काहे तू अब न मौज करे 
 दिल---
 जानती हूँ की मैं हार सकती नहीं 
 झुक सकती नहीं टूट सकती नहीं 
 फिर क्यों कोशिशें रोज रोज करे 
 दिल----

ए मन





ए मन ये उम्र नहीं 
 दोबारा उलझने की 
 ये तो है सुलझने की 
 धुंध के छटने की 
 जो समझ न पाए अब तक 
 वो समझने की 
 ए मन ये उम्र है ----
 ना रूठने मनाने की 
 ना कसमें खाने की
 ना पश्चाताप की 
 ना आग कुछ बड़ा करने की 
 बस ये तो है
  शांति और संतुलन की
 ए मन ये उम्र है ---
 खुद से खुदके  मिलने की
 खुद से प्यार करने की 
 जीवन का खोना पाना
  स्वीकार करने की 
 ए मन ये उम्र है ---
  थोड़े से नियमों की  
 खुलकरके जीने की 
 सबको अपनाने की
 गीत नया गाने की
 खुद को साधने की 
 ना की बिखरने की 
 ए मन ये उम्र है----