दिन रह गए बहुत ही कम काम बहुत और वक़्त कम सँवर-निखर तू दिन-ब-दिन जब तलक है दम में दम दिन-रात हो या धूप-छाँव सुख-दुःख हों तो भी क्या हुआ जगा अंदर की आग को तू आगे बढ़ मेरे सनम तन्हाई मिलन वफ़ा जफ़ा अपना-पराया भूल जा दिल की कली मुस्कुराएगी जरा गुनगुना मेरे सनम ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️