बेशक औरत कर सकती है इतना सब कुछ पर वो ही क्यों करे इतना सब कुछ क्या हाथ बटाना किसी का फ़र्ज़ नहीं साथ निभाना किसी का फ़र्ज़ नहीं त्याग सिर्फ औरत के लिए क्यों इतना भी हम पर किसी का क़र्ज़ नहीं समर्थ होना कोई मजबूरी तो नहीं वो हर तरह से पूरी है आधी अधूरी नहीं