सिर्फ मर्द नहीं औरतें खुद भी हैं ज़िम्मेदार अपनी नाकामियों की नाकामियों का सेहरा क्यों केवल मर्दों के सर बांधती हैं अगर वो दुखी हैं तो आवाज़ उठायें ना काम का अतिरिक्त बोझ है तो "ना" कहे ना क्या ज़रूरत है अत्याचार सहने की आँख में आँख डालकर बोलें ना छोटे छोटे प्रलोभनों में क्यों फंस जाती हैं स्वाभिमान को हाँ और आराम को ना बोलें ना दिल दिमाग का इस्तेमाल करने से रोका किसने है तुम भी कुछ तो थोड़ा तो बोलो ना दूसरों को सताना नहीं है स्वयं सम्मान से रहना है भावनाओं में नहीं बहना है अपने सम्मान के लिए कृपया बोलो ना