जब कह न सकी कोई बात न समझा कोई ज़ज्बात कोई नहीं था साथ जब जिंदगी में थी रात तो मैंने कलम उठा ली दिखा रोता हुआ कोई या हारा हुआ कोई दिल का मारा हुआ कोई न लड़ पा रहा कोई कहने को दर्द सबका लो मैंने कलम उठा ली उपेक्षा से भरा जो मन बढ़ने लगी जब ये घुटन टूटे दिल की थी चुभन नहीं लगता था कहीं भी मन झट मैंने कलम उठा ली आत्मस्वाभिमान पर हुई चोट दिखा सबको मुझ में ही खोट मज़बूरी ने सिले थे होंठ हुए अपने थे जब पराये बैठी थी खुद को बिसराये बड़ी हिम्मत से मैंने कलम उठा ली विचारों का तूफ़ान खुद की पहचान अपनों का मान स्त्रियों का सम्मान समाज का उत्थान इतना कुछ और मैंने कलम उठा ली