तुझे खुद को साधना होगा जीतने की ख्वाहिश हो या हो कुछ पाने की दुनिया से जीतने की या उसे हराने की किसी को प्यार देने की या किसी का प्यार पाने की दुनिया में अपने नाम का परचम लहराने की किसी भी ख्वाहिश को मूर्त रूप देने को तुझे खुद को साधना ही होगा
Month: March 2021
कुछ सवाल
हम क्यों नहीं अपने बच्चों को समझ पाते हैं? जो माँ बाप ने की वही गलतियां दोहराते हैं कुछ माँ बाप के किये की कसक है सभी के सीने में जिनसे हम कभी उबर नहीं पाते हैं फिर किस बात के लिए हम खुद को उनसे बेहतर बताते हैं? अपने सपने उनपर क्या थोपना सही है? उनकी इच्छा उनकी क्षमता पर सवाल उठाना सही है ? कभी जानो तो सही वो हमसे क्या चाहते हैं? क्या माँ बाप की ख़ुशी के लिए अपनी खुशियों का दमन सही है? क्या प्यार और परवाह का दाम माँगना सही है? अपनी मर्ज़ी से उन्हें इस दुनियां में लाकर उनके जीवन पर अधिकार जमाना सही है? इतना अहंकार हम कहाँ से लाते है? समाज से हम इतना क्यों डर जाते हैं? कुर्बानियां माँ बाप के सम्मान के नाम पर आने वाली पीढ़ी से मांगते जाना क्या सही है? चलो थोड़ा उनसे पूछते बतियाते हैं कुछ उनकी सुनें कुछ अपनी सुनाते हैं चलो जीवन के कुछ सवाल सुलझाते हैं आओ नयी पीढ़ी से हाथ मिलाते है
छुई मुई
छुई मुई बन के न सिमटते रहो अपने में दुनिया तो बैठी ही है उंगलियां दिखाने को आगे बढ़ो तुम और पूरे करो सपने अपने फिर वो तैयार है तालियां बजाने को
ख़ामोशी
मुझे मेरी खामोशियों तन्हाइयों में रहने दो कह रही हूँ कुछ अगर मुझे सिर्फ उतना ही कहने दो शब्द ज्यादा हो गए तो शोर ये हो जाएंगे प्यार दर्द बेचैनी जो भी हो सब चुपके चुपके सहने दो
स्त्री
इंसान है वो प्यार और ज़ज्बात से भरी हुई सिर्फ जिस्म समझ के नासमझ न यूँ उसका तू अपमान कर प्यार और विश्वास से वो महकती खूब है बेरुखी बेकद्री से ना उसको तू परेशान कर
प्यारा नाती
नटखट प्यारा राजदुलारा नन्हे नन्हे पाँवों से जब आता है पास मेरे मन खुशियों से भर जाता है मुस्काये वो देख मुझे जब दिल बाग़ बाग़ हो जाता है उठें हिलोरें मन में जब वो अपने आप इठलाता है कभी है गिरता कभी संभलता ठुमक ठुमक वो ऐसे चलता मन वीणा के तार छेड़कर खूब खूब इतराता है झूठ मूठ का गुस्सा करता झूठ मूठमें वो है हँसता कभी किसी की नज़र लगे न मन ये डर डर जाता है तू है मेरी आँख का तारा तुझ से मेरा जग उजियारा आजा तुझको गोद में ले लूँ मन तो बस ये ही चाहता है नटखट प्यारा राजदुलारा
समय
समय रुकता नहीं कभी ये यूँ ही चलता रहता है सदुपयोग हो समय का तो आसान हो जीवन नहीं तो यूँ ही ये तो हाथों से निकलता रहता है समय से बंधी प्रकृति सूरज चाँद और तारे समय से रात दिन और ऋतुएँ बदलती रहती हैं समय अनुकूल हो तो खुश रहता है हर कोई गर प्रतिकूल हो जाए तो निराशा उदासी बेचैनी चाहे अनुकूल हो या प्रतिकूल सम रहना सीख ले बन्दे बस चलता रह तू भी जैसे ये चलता रहता है समय रुकता नहीं कभी ये यूँ ही चलता रहता है
धन्यवाद
आभार धन्यवाद शुक्रिया
सोचा नहीं था वो हो रहा है
सब कुछ खुद ब खुद हो रहा है
इतना प्यार सराहना सबका साथ मिल रहा है
जादू ये मुझ संग ग़जब हो रहा है
मेरे विचारों से सहमत है दुनिया
लगने लगी थोड़ी अपनी सी दुनिया
न गायेगा ये दिल फिर से कभी भी
"मेरे सामने से हटा लो ये दुनिया"
कदम रहे ज़मीन पे न अकड़ा ये सर हो
रहे मुझपे रहमत क़बूल ये अरज हो
हर शब्द जो निकले कलम से कभी भी
न गलत कभी भी उसका असर हो
जानती हूँ शब्दों में तू ही समाया
सर पर रहे मेरे तेरा ही साया
मुनासिब हो जो भी लिखे वो कलम ये
तेरा करम ही है मैंने कमाया
आभार धन्यवाद शुक्रिया
ज़िम्मेदारी
सिर्फ मर्द नहीं औरतें खुद भी हैं ज़िम्मेदार अपनी नाकामियों की नाकामियों का सेहरा क्यों केवल मर्दों के सर बांधती हैं अगर वो दुखी हैं तो आवाज़ उठायें ना काम का अतिरिक्त बोझ है तो "ना" कहे ना क्या ज़रूरत है अत्याचार सहने की आँख में आँख डालकर बोलें ना छोटे छोटे प्रलोभनों में क्यों फंस जाती हैं स्वाभिमान को हाँ और आराम को ना बोलें ना दिल दिमाग का इस्तेमाल करने से रोका किसने है तुम भी कुछ तो थोड़ा तो बोलो ना दूसरों को सताना नहीं है स्वयं सम्मान से रहना है भावनाओं में नहीं बहना है अपने सम्मान के लिए कृपया बोलो ना