वो समझता था खिलाडी है वो बहुत अच्छा खेलता है क्या खूब चालें हैं उसकी कितनी सहजता से झूठ बोलता है दोहरी ज़िन्दगी जीता था वो,बखूबी समाज की आँखों में धूल झोंकता है पर एक दिन रब सह ना पाया, उसकी बदमाशी अब रात दिन उसकी पोल खोलता है जो जानते हैं सब उसके बारे में वो उन्हीं के आगे अपनी ताल ठोकता है हँसते हैं सब मन ही मन में, ये सुनकर वो फंस चुका जाल में ! पर राज़ कौन खोलता है अब खिलाडी के साथ कोई खेल खेलता है
Month: May 2021
आदमी
काश कुछ लोगों को ये समझ आये कि वो राम या कृष्ण नहीं हैं केवल आदमी हैं मामूली से कुछ तो इंसान भी नहीं हैं राम हो तो मर्यादित व्यव्हार कहाँ है कृष्ण हो तो प्रेम चातुर्य चमत्कार कहाँ है आदमी हो के अकड़ते हो ऐसे इंसानियत से कोई सरोकार कहाँ है
ताकीद
गिरता है जो ज़मीर से फ़र्ज़ है तेरा ताकीद करना फिर भी ना माने वो तो वाजिब है तेरा ज़लील करना
माँ
इतने ऊँचे पायदान पर मत बिठाओ उसे कि वो दिल की ना कह सके छोटी छोटी खुशियों की मांग ना रख सके खुल के ना हॅंस सके ना रो सके वो भी तो सामान्य औरत है महानता के खिलौने से मत बहलाओ उसे माँ सिर्फ प्यार ही क्यों करे कमियाँ सुधारने का भी अधिकार हो उसे हाँ वो गलत भी हो सकती है,एक नहीं कईं बार! माफ़ी उससे लेना ही नहीं ,देना भी सीखो उसे बिनशर्त प्यार मिला हमेशा तुम्हें तन मन धन लुटाया हमेशा उसने तुमको समझा अपनी दुनिया उसने अपनी दुनिया के अधिकार, मत समझाओ उसे हाँ ये दुनिया का रिवाज़ है ऐसा ही होता है वो समझ जायेगी धीरे धीरे बस तुम मत समझाओ उसे
थकान
थक गया तन मन क्यों एक दूसरे की छीछालेदर ये दिन रात करते हैं ये कैसे लोग हैं जो टीवी पर बहस करते हैं ? झूठ का प्रचार अप्रांसगिक छींटाकशी सत्ताधारी का महिमामंडन हर तरफ दुःख, अशांति झूठ का है बोलबाला कुछ भी बकवास करते हैं बढ़ती मंहगाई ,टैक्स ,बेरोज़गारी लचर प्रशासन, कमज़ोर न्याय व्यवस्था सुरसा की तरह मुँह खोल ये नेता बस जनता का हर तरह से शोषण करते हैं कहते हैं इंसान ही इंसानियत भूल रहा हमारा क्या कसूर तो फिर पुलिस न्याय कानून क्या करते हैं वादे इरादे क्या हुए इनके? बस चीख कर एक दूसरे पे ज़िम्मेदारी मंडते हैं थक गया तन मन
प्रभु का परमप्रिय
जो सम रहे, मित्र-शत्रु व मान-अपमान में सर्दी-गर्मी में, सुख-दुख में, निंदा-स्तुति में जो सदा मननशील, ममतारहित ,अनासक्त वही स्थिर भक्त मानव, है प्रभु का अति प्रिय ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
राय है मेरी
राय है मेरी ! किसी के बारे में राय ना बनाइये कुछ जानते नहीं , तो बात ना बनाइये कुछ अच्छा बड़ा करने के लिए,भेजा है रब ने तुम्हें दूसरों की सोच में, अपनी जान ना गँवाइये जिनके बारे में राय है, उन्हें तो पता भी नहीं जो गलत लगते तुम्हें, अधिकांश गलत होते नहीं उनकी बातें छोड़ कर, कुछ अपने बारे में सोचिये अनमोल है जीवन आपका, व्यर्थ यूँ ही ना गँवाइये समझ उनकी,जीवन उनका,नजरिया भी उन्हीं का है अपने काम से काम रखिये समय ना यूँ गँवाइये सलाह दीजिये तभी, जब भी माँगी जाए आपसे खुद को न्यायाधीश समझ, जान तुम ना खाइये यूँ भी व्यर्थ निंदा करना, उसूलन पाप बहुत बड़ा दिमाग का करें इस्तेमाल, पाप तो ना कमाईये यार मान लीजिये किसी का दिल ना यूँ दुखाइए राय है मेरी ! किसी के बारे में राय ना बनाइये ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
मन की बात
बहुत कुछ हो रहा है हमारे दिल में ,घर में ,समाज में, देश में ,दुनिया में हर तरफ बहुत कुछ डरा रहा है ,बता रहा है जो हमारे नियंत्रण से बाहर है क्या करे समझ नहीं आ रहा है जो भी हो हमे खुद को संभालना ही होगा पहले भीतर से, फिर बाहर से ! सबसे पहले तो हम इस परेशानी में अकेले नहीं हैं कई लोगों के हालात हम से भी बुरे हैं और कोई ना भी हो तो परमात्मा तो है विश्वास रख !! हम जो कर रहे हैं वो परेशानी बढ़ा रहा है या कम कर रहा है ? आराम से बैठो और खुद को दूर से देखो जवाब ज़रूर मिलेगा हम सभी के अपने कर्म हैं, अपनी यात्रा है ,अपनी मंज़िल है! दर्द को गुजरने दो ,दर्द को निकलने दो , ये सामान्य है,दर्द को गतिरोध न दो !! तुम सिर्फ तुम ! तुम्हारे अच्छे दोस्त हो ! जो खुद को औरों से बेहतर जानते हो !! केवल तुम्ही भरोगे अपने घाव ! तुम्ही करोगे खुद को स्वस्थ!जानते हो ! चुनौतियाँ तो पहले भी आती थीं, अभी भी हैं और आती रहेंगी ! हम हार नहीं मान सकते ,कभी नहीं ! ये विकल्प ना पहले था! ना है ! ना रहेगा ! रब की रज़ा में खुश रह, आगे बढ़ चाहे जो भी हो !
तो बात है !
इस डर और दहशत के माहौल में तुम बेख़ौफ़ बात रखो, तो बात है ! सब सर झुका रहे अन्याय के खिलाफ तुम ऊँचा रखो तो बात है ! अव्यवस्था ,कालाबाज़ारी और स्वार्थ का गीत गा रहे हैं सब इसे बदलने की लो ज़िम्मेदारी , पहला कदम रखो ,तो बात है ! मानवता की बात करके अमानवीय व्यवहार ? ऐसे लोगों को ना पनपने दो, तो बात है ! अशिक्षा ,अनैतिकता बिखरी हुई चारोँ तरफ शिक्षित करो समाज, तो बात है ! शिक्षा और इलाज़ सबको मिलना चाहिए भारत में अब ये, सबसे ज़रूरी बात है! महिमामंडित हो रहे है !ये रँगे सियार ! इनको बेनकाब करो, तो बात है ! मत बहकना अब धर्म ,जातपात , आरक्षण के नाम पर , रोटी ,कपडा, मकान और रोज़गार की हो बात ,तो बात है ! आज सब किसी ना किसी तरह से तुम्हे अलग कर रहे ,समझो इनकी साज़िश ! सब हो जाओ एक ! तो बात है !
सचेत
बहती लाशें है नदियों में हम फिर भी ना चेत रहे जो असली वजह हैं, इस सब की वो रब से अब सचेत रहें