तेरे दावों तेरे वादों पर नहीं ऐतबार हमे हाँ नहीं है! नहीं है! प्यार हमे हमने गिरगिट की तरह तुम्हे रंग बदलते देखा है अपने फैसलों पे तो है अख्तियार हमे सर से पाँव तलक झूठ की मूरत हो तुम और हमसे चाहिए वफ़ा ओ ऐतबार तुम्हे! यूँ चल रहे हम जैसे हर तरफ हो कोहरा राह देती नहीं दिखाई कोई हमें सज़ा तो हम तुम्हें कोई भी कभी भी दे सकते हैं पर दिल से ये आवाज़ कभी ना आयी हमे आ चल साथ चले नदी के दो किनारे से जब तलक मेरे ज़ज़्बात जोड़ पाएं हमे !