यदि कोई अतिशय दुराचारी भी दुराचार छोड़ अनन्य भाव से भगवान को भजता है तो वो साधू ही है ! वो समझ चुका है परमात्मा के समान कुछ भी नहीं है ! वो शीघ्र ही धर्मात्मा हो परम शांति को प्राप्त होता है ! भगवतभक्त कभी नष्ट नहीं होता !
यदि कोई अतिशय दुराचारी भी दुराचार छोड़ अनन्य भाव से भगवान को भजता है तो वो साधू ही है ! वो समझ चुका है परमात्मा के समान कुछ भी नहीं है ! वो शीघ्र ही धर्मात्मा हो परम शांति को प्राप्त होता है ! भगवतभक्त कभी नष्ट नहीं होता !