वो समझता था खिलाडी है वो बहुत अच्छा खेलता है क्या खूब चालें हैं उसकी कितनी सहजता से झूठ बोलता है दोहरी ज़िन्दगी जीता था वो,बखूबी समाज की आँखों में धूल झोंकता है पर एक दिन रब सह ना पाया, उसकी बदमाशी अब रात दिन उसकी पोल खोलता है जो जानते हैं सब उसके बारे में वो उन्हीं के आगे अपनी ताल ठोकता है हँसते हैं सब मन ही मन में, ये सुनकर वो फंस चुका जाल में ! पर राज़ कौन खोलता है अब खिलाडी के साथ कोई खेल खेलता है