अंदाज़

रही सबकी अपनी यात्रा अपना अपना साथ 
     अपने निज़ी अनुभव और अपने जज़्बात 
दुनिया से कहे 'मुक्त', जी ये कैसे  है मुमकिन 
     कहनी बात हमारी  हो और आपका हो अंदाज़ !
            ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️

क्यों





बता ए जिंदगी तुझे, समझ कर भी  
मैं समझूं क्यों 
मासूम बच्चा है दिल के अंदर 
निश्छल प्यार का जो है समंदर       
उसे किसी भी कीमत पे 
मैं खोऊं क्यों, मैं रोऊँ क्यों     
अपने हो या पराये 
चाहे दिल क्यों ना दुखाएँ 
खोकर प्यार अपनों का  
मैं  रोऊँ क्यों मैं खोऊं क्यों 
ज़िन्दगी खूबसूरत है 
मैं नए रंग भर लूँगी  
बचे जो खूबसूरत दिन   
गुजारूंगी शान से मैं!
इन्हे ढोऊं क्यों मैं रोऊँ क्यों   
ढलती शाम,गहराती रात 
कभी हैं राहें पथरीली 
रही योद्धा ही हरदम मैं
अब लड़े बिन हार जाऊं क्यों 
बता ए जिंदगी तुझे, समझ कर भी  
मैं समझूं क्यों  
मैं रोऊँ क्यों मैं टूटूँ क्यों 
मैं हारूँ क्यों मैं रूठूँ क्यों 

वादा





दूर तक खामोशियाँ तन्हाईयाँ क्यों हैं 
लबों से मुस्कान दूर दूर क्यों है 
हमने तो खुद से वादा किया था खुश रहने का 
ए दिल, तू इतनी बगावत पे क्यों है   

आस

मैं हर वक़्त तेरी यादों में गुम सी हूँ 
तू यहीं कहीं मेरे आसपास ही है 
तेरी आरज़ू तेरे अहसास में डूबी ऐसे 
वो जिसने ज़िंदा रखा ,तेरे मिलने की आस ही है

आइना

आईने तू इतना सख्त क्यों है ?
आईने तू इतना कम्बख्त क्यों है ?
क्यों दिखानी है तुझे क्रूर सच्चाई
क्या किसी का दिल रखना नहीं आता है?
जैसा दिखता है! तू दिखाता है  
यहाँ तक तो ठीक,सह लिया हमने 
क्यों दिल का हाल तू बताता है?
तुझ पर धूल, तो भी मैले हम! 
ये सियासत तुझे कौन सिखाता है 
तू तो शायरी में अच्छा मक़ाम रखता है 
फिर क्यों दूसरों को नीचा दिखाता है 
हम करे गिला शिकवा तुझे कोई फर्क नहीं 
चिकने घड़े सा हरवक्त तू सताता है
आईने सा किरदार तेरा है ,तो याद रख तू भी !
ज़रा सी ठेस से वो चूर चूर हो जाता है  
       ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️