🌹🌹💐💐मेरी रचना का शीर्षक है-
"क्या हुआ"
क्या हुआ जी? क्या हुआ जो बदल रही हैं औरतें?
सब कुछ बदल रहा है, फिर क्यों ना बदलें औरतें?
तुम्हारी सहूलियत के हिसाब से बदलें? और जियें ?
क्यों अपने ऊपर इतनी बंदिश रखें औरतें?
सक्षम भी हैं और है विचारों की दृढ़ता भी
फिर क्यों नीचा दिखाती औरतों को खुद औरतें?
घर परिवार की ज़िम्मेदारी सिर्फ औरत की ही क्यों?
क्यों दिमाग से नौकर समझती एक दूसरे को औरतें?
बदल रहा है समाज तो, शिक्षित हो रही औरतें
फ़र्ज़ समझाते लोग हैं, हक़ खुद समझ रही औरतें
ममता प्यार मान सम्मान, औरतों ने बांटा सदियों तलक
क्या हुआ जो खुद के लिए, अब वही सब चाहें औरतें
टूटेगा कब ये सिलसिला जो मैंने सहा वो सब सहें ?
अपना समझ कर एक दूसरे का साथ दे अब औरतें
टूट कर रहीं, तो सदियों की गुलामी हिस्से में थी
साथ आओ एक दूसरे की, ज़ंजीरें तोड़ें अब औरतें
औरत कोई सामान नहीं, कोई चीज़ नहीं मनोरंजन की
इंसान हैं, इंसान सा सम्मान पाएं औरतें
अच्छाई औरत की बने ना कमज़ोरी, तू ध्यान रख !
देवी बताकर त्याग की बलि चढ़ी हैं औरतें
क्यों नहीं कहता कोई, गलत हो तेरे संग तो दुर्गा बन
डरकर सहकर पृथ्वी बन कर कैसे जिए ये औरतें
गर मुट्ठी भर औरत गलत हों ,सबको ना बदनाम कर
सिर्फ औरतों में ही नहीं मिलती हैं गलत औरतें
क्यों हंगामा है इस कदर जो बदल रही हैं औरतें
सब कुछ बदल रहा है, फिर क्यों ना बदलें औरतें
✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
Seema Kaushik is a poet based in Faridabad, India. She is an engineering graduate, who spent most of her life as a homemaker. After being forced to live according to society’s rules, she has finally discovered her voice in her 50s. Now, she writes to be free.
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Amazing! 👏
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thankyou !
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i always look forward to your feedback!thank you!
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Keep writing! ✌
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