जानबूझकर आपकी राह के पत्थर बने हैं हम चाहते हैं तुम्हें ! इतना कैसे फिसलने दें जुड़ा हुआ है ये दिल आपसे ज्यूँ ,स्वास शरीर से कैसे आपको यूँ ,हाथों की लकीरों से निकलने दें
जानबूझकर आपकी राह के पत्थर बने हैं हम चाहते हैं तुम्हें ! इतना कैसे फिसलने दें जुड़ा हुआ है ये दिल आपसे ज्यूँ ,स्वास शरीर से कैसे आपको यूँ ,हाथों की लकीरों से निकलने दें
वाह , बहुत सुन्दर..
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जी बहुत बहुत आभार आपका !
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हार्दिक धन्यवाद !
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