हर लम्हा बीत रहा है हाथों से यूँ छूट रहा है जैसे रेत को भर मुट्ठी में हाथों से कोई भींच रहा है हर लम्हे को जी ले तू हर सांस को कर महसूस ख़त्म हो रहा यूँ मंज़र जैसे आँखों को कोई मींच रहा है
हर लम्हा बीत रहा है हाथों से यूँ छूट रहा है जैसे रेत को भर मुट्ठी में हाथों से कोई भींच रहा है हर लम्हे को जी ले तू हर सांस को कर महसूस ख़त्म हो रहा यूँ मंज़र जैसे आँखों को कोई मींच रहा है