'जिस मनुष्य के अंतःकरण में "मैं करता हूँ "का भाव नहीं जिसकी बुद्धि सांसारिक वस्तुओं में ,कर्मों में लिप्त नहीं वो मनुष्य सब लोकों को मारकर भी 'वास्तव 'में किसी को मारता नहीं और किसी पाप से बँधता नहीं '
'जिस मनुष्य के अंतःकरण में "मैं करता हूँ "का भाव नहीं जिसकी बुद्धि सांसारिक वस्तुओं में ,कर्मों में लिप्त नहीं वो मनुष्य सब लोकों को मारकर भी 'वास्तव 'में किसी को मारता नहीं और किसी पाप से बँधता नहीं '