हर धर्म का मूलभूत आधार ,
सबसे बड़ी मांग है,इंसानियत !
तो क्योँ हर बार यही सबसे
पहले सूली पे चढ़ती है ?
देश की अर्थव्यवस्था गिरी हुई है
तो ये शेयर मार्किट कैसे चढ़ती है ?
प्यार और इज़्ज़त चाहिए एक दूसरे से
पर देने में नाक-भौं क्यों चढ़ती है ?
जो समझते नहीं धर्म का अर्थ, अपनाते नहीं उसकी शिक्षा
तो धार्मिकता कैसे बढ़ती है?
जो शिक्षा,स्वास्थ्य और महंगाई पर नहीं देते ध्यान
तो लोकप्रियता कैसे बढ़ती है ?
हर साल शहरों की सड़कें बनती टूटती हैं
तो पानी की निकासी क्यों नहीं बनती है ?
दूसरों के दुखदर्द पर चुप रहकर नज़रअंदाज़ करने वालों
खुद पर पड़े तो चीख क्यों निकलती है ?
हज़ारों खुलासे होते हैं रोज़
भुला देते हैं लोग!
अपने से मतलब?
तो ज़िम्मेदारी किसकी बनती है ?
Seema Kaushik is a poet based in Faridabad, India. She is an engineering graduate, who spent most of her life as a homemaker. After being forced to live according to society’s rules, she has finally discovered her voice in her 50s. Now, she writes to be free.
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