"ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी ,ये सब ताडन के अधिकारी।"
क्या एक साथ पाँचों रखने में भूल नहीं है भारी ?
इनमे सिर्फ ढोल निर्जीव ,बाकी सभी सजीव
निर्जीव सजीव एक साथ तुलें ! क्या लगता नहीं अजीब ?
ढोल की ताडना करिये वर्ना संगीत नहीं होगा उत्पन्न
गंवार कोई नहीं अपनी मर्ज़ी से,हाल हालात बनें दुश्मन
है गंवार इसलिए कोई , कि मिली नहीं उसे दीक्षा
किसी अमीर या ऊँची जाति के हाथों में ही शिक्षा
शूद्र के साथ करते रहे हम सदियों से अन्याय
उनके साथ व्यवहार हुआ ऐसा, मानवता भी शर्माए
पशु जो बोल ना पाएं ,पीड़ा भी जता ना पाएं
उनको ताड़ना दे हम उनसे , मनचाहा करवाएं
नारी जो हरतरह से सक्षम ,तन मन और मस्तिष्क
पुरानी साज़िश के तहत उसे हम कमज़ोर बताएं
प्रसव वेदना सहकर जो करती सृष्टि की रचना
अपना अपना कह के भी, कोई माने न अपना
जो प्यार से ही कर देती, अपना सब कुछ न्यौछावर
घर को स्वर्ग सा वही बनाये ताड़ना नहीं 'प्यार' पाकर !
कितने गरूर से लोग यहाँ ये चौपाई ,गाएं और दोहराएं
नारी गरिमा को धर्म के नाम ,निर्मम चोट पहुँचायें
कैसे नारी को एक 'संत' कह सके ताड़न का अधिकारी ?
नारी जगत का आधार,महिमा उसकी है भारी !
अगर उनकी ही नारी,नहीं देती उनको ज्ञान
कैसे बन जाते वो संत तुलसीदास महान !!
"जितना हेत हराम में ,उतना हरि में होय।
कह कबीर ता दास का,पल्ला न पकड़े कोय।।"
Seema Kaushik is a poet based in Faridabad, India. She is an engineering graduate, who spent most of her life as a homemaker. After being forced to live according to society’s rules, she has finally discovered her voice in her 50s. Now, she writes to be free.
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11 thoughts on “नारी”
क्या बात है सीमा जी
बेहद सुंदर पंक्तियों से मजबूत कविता को रचा है आपने 😃
क्या बात है सीमा जी
बेहद सुंदर पंक्तियों से मजबूत कविता को रचा है आपने 😃
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आपकी सराहना का ह्रदय से धन्यवाद !
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💮🌼🌻🏵️🌸🌺🌷🥀🌹💐🍫☺️
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A beautiful post👌👌
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हौंसला बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद !
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Gazab बेमिसाल है यह कविता
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thanks dear !
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बेहतरीन रचना 👏👏👏
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i am thankful n grateful ! : )
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बहुत सुन्दर रचना |
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thanks a lot !
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