आइना क्या बोल गया भेद सारे खोल गया मैं अनभिज्ञ अपने आप से जाना नहीं अभी तक जो राज़ पर वो मेरी पोल मुझ ही से खोल गया छुपाना चाहती है जो ज़ालिम ज़माने से तू! वो तो तेरी आँखों में लिखा ये आइना क्या बोल गया ? ज़माना नहीं तेरा ,उम्र हुई अब ! सिमट के रह अपने में सम्मानित जीवन इसीमे है! क्यों आइना ये बोल गया? खामोश लब,मुस्कुराती आँखें तन्हाई हमसफ़र, मुट्ठी भर अपनों का साथ यही तो है थाती तेरी ! रह इसी के साथ ! आइना सच बोल गया तू उम्र अनुभव प्यार और अहसास का बेजोड़ मेल है! गाती रह अंतर्मन गीत मुस्कुराके बोल गया
वाह, बहुत सुन्दर..
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आपकी सराहना का ह्रदय से धन्यवाद !
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सुन्दर..
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आपकी सराहना का ह्रदय से धन्यवाद !
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