"तीन हैं नरक के द्वार काम क्रोध और लोभ जो करते हैं आत्मा का नाश! इसलिए त्यागने योग्य हैं जो मनुष्य है इनसे मुक्त वो अपने कल्याण का आचरण कर परमगति को प्राप्त होता है मनमाना आचरण ना दे सिद्धि ना सुख ,ना परमगति " "कर्तव्य और अकर्तव्य की व्यवस्था के लिए ही शास्त्र हैं शास्त्रविधि से निर्धारित कर्म ही करने योग्य हैं "