दीख रहा कुछ और है हो रहा है कुछ और ये उन्नति या अवनति गरीब के मुँह नहीं कौर विकास के नाम पर छू रहे पतन के नए आयाम ! नहीं छोटी छोटी बातों पे अब करता कोई गौर शारीरिक मानसिक आर्थिक आध्यात्मिक पतन का दौर सब बहुत हैं धार्मिक ! अपने अपने धर्म का बहुत शोर पर विडंबना ये कि इंसानियत को दिया है पीछे छोड़ समझ को भी लग गया, कैसा भयंकर रोग! किसी से गंभीर बात करो तो हंस कर बोले लोग चलो बात करें कुछ और चलो बात करें कुछ और