हाँ मैं पहेली हूँ मानती हूँ ! उसे पता भी नहीं मैं उसके बारे में कितना जानती हूँ वो मुझे पढ़ने का दावा करता है मैं उसे शोध का विषय मानती हूँ नारी हूँ ! ऋषि मुनि भी ना जान पाए मुझे ! मैं उसके हर वार को पहचानती हूँ ! सुन तन से ऊपर उठ मन की तह में पहुँच ! तो ही पा सकेगा मुझे ! ये वो कर ही नहीं पायेगा मैं जानती हूँ ! चारों तरफ शोर सिर्फ सच्चे प्यार का इसी को बनाया सभी ने मेरे लिए जाल मानती हूँ ! सुन समय की धारा में मेरे साथ बह ले इसी में है सच्चा सुख ! कोई सुलझा नहीं सकता मुझे जब मैं ठानती हूँ !
बहुत सुन्दर नारी दर्शन |
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dhanyavaad!shukriya ! : )
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