जिस सुख में मनुष्य भजन ध्यान और सेवादि के अभ्यास से आनंदित होता है और दुखों का अंत होता है जो शुरु में लगे विष सामान पर अंत में अमृत समान परमात्मा से जुड़ी बुद्धि से मिला वो सुख सात्विक है विषय और इन्द्रियों के संयोग से हो जो सुख उत्पन्न भोगने में हो जो अमृत जैसा मगर परिणाम में विष जैसा वो सुख राजस है जो करे सुख भोगने में और परिणाम में मोहित आत्मा को जो निद्रा आलस्य और प्रमाद से हो उत्पन्न वो सुख तामस है पृथ्वी ,आकाश ,देवता या कही भी ऐसा कोई नहीं जो रहित हो इन तीन गुणों से