इंसान





हर इंसान एक बदन दिखता
पर परत दर परत रोज़ खुलता
ज़रूरत का हिसाब है साहब !
हर किसी से अलग अंदाज़ में मिलता !
 
हर किसी के लिए अलग चेहरा अलग जुबां !
दिल भी हर किसी से नहीं मिलता 
क्यों कहते हो अपना किसीको जब 
बर्ताव में अपनापन नहीं मिलता ?

इंसानियत का परिचय नहीं मिलता 
दिल से दिल नहीं मिलता 
जुबां बोलती है कुछ, ! और आँखें कुछ !
प्यार और भरोसे का कमल नहीं खिलता
 
तू इंसान है इंसानियत रख !
मन वाणी विचार व्यवहार में समानता रख !
दिल दिमाग का बना तालमेल !
फिर बता !कैसे सफलता का मंजर नहीं मिलता !

3 thoughts on “इंसान

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