हर इंसान एक बदन दिखता पर परत दर परत रोज़ खुलता ज़रूरत का हिसाब है साहब ! हर किसी से अलग अंदाज़ में मिलता ! हर किसी के लिए अलग चेहरा अलग जुबां ! दिल भी हर किसी से नहीं मिलता क्यों कहते हो अपना किसीको जब बर्ताव में अपनापन नहीं मिलता ? इंसानियत का परिचय नहीं मिलता दिल से दिल नहीं मिलता जुबां बोलती है कुछ, ! और आँखें कुछ ! प्यार और भरोसे का कमल नहीं खिलता तू इंसान है इंसानियत रख ! मन वाणी विचार व्यवहार में समानता रख ! दिल दिमाग का बना तालमेल ! फिर बता !कैसे सफलता का मंजर नहीं मिलता !
Har roz ik nayi parat hai kholta, naa jaane insaan hai ya pyaaj! 😅
LikeLike
you are right ! sometimes i feel sad about the deteriorating humananity in soceity !
LikeLike
When he have enough of something, we start losing its value. And when we start losing it, we start valuing it. Nature has its own ways of bringing equilibrium to its elements.
LikeLike