हर इंसान इतने सवालों के घेरे में क्यों
मची दिल में ये हलचल क्यों
हम जिए हमेशा जिनके लिए
कम पड़ जाता है सब कुछ उन्हें क्यों ?
दिल में दर्द का समंदर क्यों
जख्म सीने के अंदर क्यों
लब सिल लिए हमने यारों
शोर ज़ेहन के अंदर क्यों ?
सही गलत क्या,पाना खोना क्या
नियम कायदे क़ानून हमारे ही लिए थे क्या ?
प्यार अपनापन सब्र त्याग सेवा
ढलती उम्र में सब हो जाए बेमानी क्यों ?
अपने ही सवाल कम नहीं हैं
अपनों के सवालों से जूझे क्यों
हमने अपनी गलती पे भी
लोगों को अकड़ते देखा
हम बिना गलती भी शर्मसार से क्यों ?
आये कहाँ से हम और क्यों
चले जाएंगे जहाँ से कहाँ और क्यों
अपने हाल हालात में किया बेहतर से बेहतर
सम्पूर्ण कुछ हो ही नही सकता यहाँ !
फिर ये सवाल क्यों
ख्वाहिश शांति की है मंज़िल शांति ही है
सब कुछ मिटटी है पर दिल में क्रांति क्यों
सब कुछ अच्छा था अच्छा है अच्छा ही होगा
नैन बंद ,भाव शून्य ,विचार शून्य ,सुनना शून्य
है सबसे अच्छा क्यों ?
✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
Seema Kaushik is a poet based in Faridabad, India. She is an engineering graduate, who spent most of her life as a homemaker. After being forced to live according to society’s rules, she has finally discovered her voice in her 50s. Now, she writes to be free.
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Waah! Bahut sundar rachna 👌
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thanks a lot lakshya !
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Well written, I think we ask ourselves these questions at different moments in life.
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thanks laxmi ji ! : )
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