ज़िन्दगी कहाँ है तू ? उम्र बीती जा रही तू नज़र ना आ रही नैन राह तकते थक गए बेचैन दिल की पुकार सुन ! ज़िन्दगी कहाँ है तू ? माँ की तरह दुलारती हर तरफ बहार सी पिता की हिफाज़त सी रब की इबादत सी ज़िन्दगी कहाँ है तू ? गुरु के मार्गदर्शन सी अपने घर की छत सी पुरसुकून रात सी प्रियतम के मान मनुहार सी ज़िन्दगी कहाँ है तू ? ऊँगली पकड़ के राह दिखा नखरे तू ना दिखा मुझमे ही रहती है तू क्यों मुझे नकारती ज़िन्दगी कहाँ है तू ? कब तलक मैं राह तकूँ ? हैं सांस ये उधार सी ! दिख गयी जो एक बार गले लगूंगी बार बार रोउंगी मैं जार जार ज़िन्दगी कहाँ है तू ? कहाँ थी तू अब तलक झपकूंगी ना मैं पलक रह जाउंगी निहारती आयी है तू अब के जब मौत है पुकारती ज़िन्दगी कहाँ है तू ? सपनों में अक्सर आती है ख्वाब तू सजाती है हकीकत में आ ना एक बार कर भी ले ना मुझसे प्यार एकतरफा प्यार को है पूर्णता पुकारती ज़िन्दगी कहाँ है तू ?
Bhuuut khub,,,,,,👌👌👌👌👌☺️
जिंदगी को अनंत सफर है, जो हमें खुद का बनाना चाहती हैं,,☺️
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yes! you are right ! i am glad to know you liked it ! : )
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Yes mam ! वास्तव में बहुत खूबसूरत है
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इतनी सूंदर प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद !आभार ! : )
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जी, यह वास्तव में सुंदर प्रशंसा के योग्य है और पढ़ने पर न्यूनतम गहराई प्रतीत होती है जी,,!!
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Wah! Bahut khoob👌
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thank you so much! : )
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प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद !आभार !
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जिंदगी के तमाम उतार चढ़ाव को समेटें…. ….जीवन के सब रंग-रूप सम्भाले यह कविता एक जीवन है..! बहुत मनोहर….💐💐
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इतनी सूंदर प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद !आभार !
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Bahut badhiya 👌
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thank you lakshya ! : )
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You’re welcome 😊
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