ज़िन्दगी कहाँ है तू

ज़िन्दगी कहाँ है तू ?
उम्र बीती जा रही  
तू नज़र ना आ रही 
नैन राह तकते थक गए 
बेचैन दिल की पुकार सुन ! 
ज़िन्दगी कहाँ है तू ?

माँ की तरह दुलारती
हर तरफ बहार सी
पिता की हिफाज़त सी  
रब की इबादत सी
 ज़िन्दगी कहाँ है तू ?
 
गुरु के मार्गदर्शन सी
अपने घर की छत सी 
पुरसुकून रात सी 
प्रियतम के मान मनुहार सी
ज़िन्दगी कहाँ है तू ?

ऊँगली पकड़ के राह दिखा 
नखरे तू ना दिखा
मुझमे ही रहती है तू  
क्यों मुझे नकारती
ज़िन्दगी कहाँ है तू ?
  
कब तलक मैं राह तकूँ ?
 हैं सांस ये उधार सी !
दिख गयी जो एक बार 
गले लगूंगी बार बार 
रोउंगी मैं जार जार 
ज़िन्दगी कहाँ है तू ?

कहाँ थी तू अब तलक 
झपकूंगी ना मैं पलक 
रह जाउंगी निहारती 
आयी है तू अब के जब 
मौत है पुकारती 
ज़िन्दगी कहाँ है तू ?

सपनों में अक्सर आती है 
ख्वाब तू सजाती है 
हकीकत में आ ना एक बार 
कर भी ले ना मुझसे प्यार 
एकतरफा प्यार को 
है पूर्णता पुकारती 
ज़िन्दगी कहाँ है तू ?

13 thoughts on “ज़िन्दगी कहाँ है तू

      1. जी, यह वास्तव में सुंदर प्रशंसा के योग्य है और पढ़ने पर न्यूनतम गहराई प्रतीत होती है जी,,!!

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  1. जिंदगी के तमाम उतार चढ़ाव को समेटें…. ….जीवन के सब रंग-रूप सम्भाले यह कविता एक जीवन है..! बहुत मनोहर….💐💐

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