वक़्त और तथाकथित बड़े जब दोनों रहें मौन अहम् और स्वार्थ कर दे रिश्तों को गौण ! तड़प कर कोई दिल कितना भी पुकारे संवेदनहीनता पसरी चारों ओर ! तो समझेगा कौन ?
वक़्त और तथाकथित बड़े जब दोनों रहें मौन अहम् और स्वार्थ कर दे रिश्तों को गौण ! तड़प कर कोई दिल कितना भी पुकारे संवेदनहीनता पसरी चारों ओर ! तो समझेगा कौन ?