ए काव्य मन ! तेरी कलम ना हो राजनीति से प्रेरित है चुनावों का मौसम ! तेरे ज्ञान की कुल्हाड़ी से तेरी शाख ही ना कट जाए है चुनावों का मौसम ! तू तो है मानव संवेदनाओं भावनाओं से जुड़ा हुआ तेरा हर गीत प्रेम अपनेपन से था गुँथा हुआ भ्रमित भी हो सकता है तू! इस बात का विचार कर संभल ! झूठ सच का कॉकटेल समाज में मिला हुआ यहाँ है चुनावों का मौसम ! सरकारें आयी गयी, स्थिति कमोबेश एक सी ! गरीब और गरीब ! अमीर और अमीर हो गया ! ना जाने प्यार भाईचारा विश्वास कहाँ खो गया ? कड़वा ना बोले था कभी जो! बातें करे ज़हर सी ! सुन ! है चुनावों का मौसम ! देख सड़कों पे है जो हममे से एक! तुझसा मुझसा ही तो है! हर नुकसान कुर्बानी होती हमेशा उसी की है तू तो बस जनता को सही राह दिखा ! गर हो सके! चयन करना अधिकार उसका ! समझ उसकी अपनी भी है ठीक है ना ! है चुनावों का मौसम !
Thoughtful lines shared and points to be pondered
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thanks tanvir for finding it worthy ! : )
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Beautiful thoughts 👌👌
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thanks for your encouraging words ! : )
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Jabarjast
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हार्दिक धन्यवाद !सादर आभार ! 💐❤️💐🙏
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