दिल की आग गहरे कहीं भी दफ़न कर दो तुम छुपा नहीं पाओगे धुआं इस कदर बाहर निकलेगा कि चाह कर भी रोक नहीं पाओगे गीली लकड़ी सा सुलगोगे ! लब मुस्कायेंगे मगर दिल की तड़प झेल नहीं पाओगे तूफान सैलाब कहर देखने जाना नहीं पड़ेगा! उन्हें अपने अंदर ही महसूस कर पाओगे धीरे धीरे सब कुछ निकल जाने दो अपने अंदर की बर्फ पिघल जाने दो तभी खुद को शांति दूजे को ठंडक दे पाओगे
वाह, बहुत सुंदर।
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दिल से शुक्रिया !
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