सह सकते थे हम तेरे जुल्मों सितम आखिरी दम तक पर क्या करें ज़मीर हाल हालात इज़ाज़त नहीं देते ! मज़बूरियाँ हो गयीं ख़त्म और हम आज़ादी पसंद तुम तो अरसे से हमारी आवाज़ का जवाब नहीं देते !
सह सकते थे हम तेरे जुल्मों सितम आखिरी दम तक पर क्या करें ज़मीर हाल हालात इज़ाज़त नहीं देते ! मज़बूरियाँ हो गयीं ख़त्म और हम आज़ादी पसंद तुम तो अरसे से हमारी आवाज़ का जवाब नहीं देते !
वह, बहुत खूब |
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