क्या करे कोई जब सब कुछ हुआ बेअसर है वो बेवक़ूफ़ जो पत्थर पे मारेगा सर ! जब उसको परवाह नहीं तुझे क्यों उसकी फ़िक्र ! प्यार में ज़बरदस्ती नहीं गर हो गया वो बेकदर ! दर्द की दवा तुझे गैर न देगा कोई अपना भी है गैर गर ज़ज़्बात गए हों उसके मर ! जीवन की कमान तू अपने हाथों में ही रख जीना है अगर तुझे ऊँचा उठा के अपना सर ! भरोसा उठ गया तेरा चाहे सारे जहाँ से पा जीवन के सही मायने रख भरोसा सिर्फ खुद पर !