शाख से टूटे हुए ........पत्ते नहीं हैं हम हवा ले जाये यूँ ....इधर उधर कभी भी कुचला हमें ग़मों-उलझन ने तो भी क्या बारहा उठने का.......जज़्बा है अभी भी
शाख से टूटे हुए ........पत्ते नहीं हैं हम हवा ले जाये यूँ ....इधर उधर कभी भी कुचला हमें ग़मों-उलझन ने तो भी क्या बारहा उठने का.......जज़्बा है अभी भी