ज़िन्दगी की शाम है और बातें अधूरी हैं कह ना पाए जो हम कहते कहते रुक गए दिल में रह गयी जो वो निकलनी भी ज़रूरी है कईं बार रोना चाहा पर हम ना रो सके रुके आंसू जो बहे नहीं वो बहने भी ज़रूरी हैं रुकी हुई जो लब पे बात बतानी भी ज़रूरी है अपनी नज़र में गिर गए तो कैसे जी पाएंगे ? दिल की बात खुल के आज कहनी भी ज़रूरी है कौन छीन ले गया मुस्कान मेरे होंठो की ? राज़ ये बताना भी जताना भी ज़रूरी है चुप्पी हमारी लग रही अब उन्हें कमज़ोरी है बात हर तरह से अब बताना भी ज़रूरी है साबित करना खुद को अब बेइंतहा ज़रूरी है ज़िन्दगी की शाम है ........