तूफान की आमद अंदर या बाहर सब कुछ देती है बदल बदल जाता है नजरिया बदल जाती है अकल कोई तूफान आता ज़िन्दगी में हो जाए सबकुछ उथलपुथल दिल डूबे कशमकश में कैसे जाऊं मैं इससे निकल सबतरह से समेट खुद को ताकत लगाते हैं सकल अंदर बाहर भड़के तूफान साँसें भी हो जाती विकल आखिर थमेगा ही तूफ़ान बच जाती है सबकी जान पर ये हो जाता है क्या ! वही रहते नहीं हम,जाते हैं पूरे बदल समझ नहीं पाते कि कैसे जीते कैसे पिया ये गरल फिर भय नहीं रहता कोई छिनने का नहीं रहता डर सहज मुस्कान नैन सजल दिल में जले हिम्मत की अनल वही रहते नहीं हम,जाते हैं पूरे बदल
बेहद खूबसूरत हकीकत बयाँ की है आपने।
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