वक़्त की धार पर जैसे तलवार पर यूँ ही चलते जाते हैं ज़िन्दगी तेरे साथ बहते जाते है ... चाहे वार मिले या प्यार अच्छा हो या हो बेकार यूँ ही सहते जाते हैं ज़िन्दगी तेरे साथ बहते जाते हैं ... चाहे अपने दे ना साथ पराये भी छुड़ा लें हाथ यूँ ही बढ़ते जाते हैं ज़िन्दगी तेरे साथ बहते जाते हैं ... मार्ग में मिले अवरोध कितना भी मिला विरोध यूँ ही लड़ते जाते हैं ज़िन्दगी तेरे साथ बहते जाते हैं ... बिछड़ गए अपने कईं जुड़ गए अपने कईं रब का कर धन्यवाद यूँ ही हँसते जाते हैं ज़िन्दगी तेरे साथ बहते जाते हैं ... ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
Month: November 2021
कमतर
अंतर्मुखी बताते रहे उसे ! कहा कुछ नहीं हो तुम ना हुस्न है,ना सलीका गयी गुजरी ,हो सबसे कम ! यहाँ गुणों की कदर किसको, स्वाभिमान है नहीं सहन अब हुस्न भी है,सलीका भी, बहिर्मुखी भी हो गयी है वो ! फिर भी कमतरी के अहसास किसी को बांटती नहीं है वो! जो भी मिला किसी से वो हमेशा दिल में ही रखा बेइज़्ज़ती और दर्द कभी बांटती नहीं है वो !
ज़िन्दगी की शाम
ज़िन्दगी की शाम है और बातें अधूरी हैं कह ना पाए जो हम कहते कहते रुक गए दिल में रह गयी जो वो निकलनी भी ज़रूरी है कईं बार रोना चाहा पर हम ना रो सके रुके आंसू जो बहे नहीं वो बहने भी ज़रूरी हैं रुकी हुई जो लब पे बात बतानी भी ज़रूरी है अपनी नज़र में गिर गए तो कैसे जी पाएंगे ? दिल की बात खुल के आज कहनी भी ज़रूरी है कौन छीन ले गया मुस्कान मेरे होंठो की ? राज़ ये बताना भी जताना भी ज़रूरी है चुप्पी हमारी लग रही अब उन्हें कमज़ोरी है बात हर तरह से अब बताना भी ज़रूरी है साबित करना खुद को अब बेइंतहा ज़रूरी है ज़िन्दगी की शाम है ........
स्वाभिमानी
स्वाभिमान हमेशा से ही महंगा है सभी रखा नहीं करते ! अहंकार और स्वाभिमान में है कुछ फर्क ! वो समझा नहीं करते ! बहुत महीन अंतर है अगर समझ पाओ तो स्वाभिमानी लोग दर्द बांटा नहीं करते !
मगरूर
की थी मोहब्बत सोच कर जीवन खिलेगा फूल सा पर मोहब्बत ने छीना होश !चुभा काँटा बबूल सा जिंदगी ने ढाये सितम !किये अपनों ने ,गैरों ने ! सितमगर ने छीना होश ! पड़ा दिल पे चाँटा मगरूर का !
सरताज
सब इश्क़ से बेज़ार हैं फिर भी तलबगार हैं ! इश्क़ का 'इ 'नहीं समझे कभी फिर भी आशिकों के सरताज हैं !
भूल जाओ ना
दबी हुई चोट को उभरने मत दो बीते हुए कल को लिपटने मत दो बड़ी मुश्किल से गुजरा है ये वक़्त गुजरे हुए वक़्त को आवाजें मत दो संघर्षों की आग में तप कर कुंदन बने हो हीरे को वक़्त से धूमिल होने मत दो मुश्किल से चैनो सुकून पाया है किसी भी कीमत पे खोने मत दो बेरहम यादें बख्शती नहीं किसीको यादों को दिल का नर्म बिस्तर मत दो ये दुनिया ऐसी ही है मान जा दिल मेरे अपनी शख्सियत को किसी के लिए खोने मत दो किसी को क्या जो तुम्हारे लिए सोचे तुम भी खुद को बेदर्द जहाँ में खोने मत दो अहम् और स्वार्थ हर तरफ फैला है इस जग में बचो ! इस महामारी को खुद से चिपटने मत दो
पापा
पापा आपकी हर सीख मेरे साथ है बस मुस्कुरा के सर पर हाथ रखना याद है आप मुझ में ही ज़िंदा हो ,हर पल साथ हो मेरे दिल की तहों में,ये प्यारा खूबसूरत अहसास है
बेरहम
दर्द दिल में करवटें लेता रहा और पलंग पर हम समझ ना पाए, है कौन बेरहम ! दर्द या खुद पर हम !
पत्ते
शाख से टूटे हुए ........पत्ते नहीं हैं हम हवा ले जाये यूँ ....इधर उधर कभी भी कुचला हमें ग़मों-उलझन ने तो भी क्या बारहा उठने का.......जज़्बा है अभी भी