37.दोहा

रखा वास्तु घर का सही, तन सजता शृंगार।
मन का भी धर ध्यान तू, कोना-कोना झार।।

आलिंगन

मौत आलिंगन करे मेरा 
इससे पहले आ ज़िन्दगी !
तेरी बाहों में थोड़ा सुस्ता लूँ 
आ तुझे गले लगा लूँ 

दिन पूरे हुए तो क्या 
कुछ लम्हें ख़ुशी मना लूँ !
तुझे सीने से लगा लूँ 
तेरी बाहों में सुकून इतना
तेरी बाहों में थोड़ा सुस्ता लूँ 
आ तुझे गले लगा लूँ 

तेरी हर बात हर अंदाज़ 
सदा रहा कबूल मुझे 
तेरे सीने पे सर रख 
सारे गम पिघला लूँ 
तुझे साँसों में समा लूँ !
आ तुझे गले लगा लूँ 

हर तरफ खामोशियाँ 
और घड़ी की टिक टिक 
खुद की साँसों को तेरा 
अहसास मैं बना लूँ
आ गले लगा लूँ   
तेरी बाहों में थोड़ा सुस्ता लूँ 

दिन था कभी तो रात भी 
कुछ गम तो खुशियों की बरसात भी 
आंसू तो मुस्कराहट भी 
तुझे हमेशा की चाहत बना लूँ  
आ तुझे गले लगा लूँ 
तेरी बाहों में थोड़ा सुस्ता लूँ 

शिखर

शिखर पर पहुँचने पर लोगों को अक्सर फिसलते देखा  
खुशियाँ सारी मयस्सर हुईं फिर भी उदासी में ढलते देखा  
कितनी कम जगह है शिखर पर टिकने की,पैर जमाने की, 
फिर भी शिखर की जद्दोजहद में ज़िन्दगी को मरते देखा 

तसव्वुर

आ तसव्वुर से बाहर हक़ीक़त  की सेज़ पे 
झूठे वादों की लम्बी फेहरिस्त आ गयी मेज़ पे 
प्यार ख़ूबसूरती वफ़ा चाहत सब हैं हवाओं में 
घायल मन दर्द आंसू शिकवे शिकायत हैं पेज़ पे 

जुनूँ





जुनूँ ख्वाब पूरा करने का हो जिसका बेहिसाब
कैसे  उसका रह सके अधूरा कोई भी ख्वाब 
हौंसला मेहनत छूए आसमाँ, उसका इस कदर 
मदहोशी इतनी क्या दे पाएगी  कोई भी शराब