प्यार करे या नफरत नहीं कोई फर्क दुःख हों या सुख हों क्या तर्क वितर्क तेरा दर्द क्यों बेचैन करे मुझे बेतरह जब अरसे से नहीं तुझसे कोई संपर्क ️✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
Month: January 2022
71.दोहा
चाहे कोई खेल हो, होती इक की हार लगे बुरा तो खेल मत, शांति मिलती अपार ️✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
70.दोहा
बिना ख़ुशी उत्साह के, मत कर सेवा यार
इसमें ख़ुशी मिले नहीं, बिगड़ें ह्रदय विचार
️✍️सीमा कौशिक ‘मुक्त’ ✍️
69.दोहा
*दुनिया भी क्या चीज़ है, हर पल करे मज़ाक* *मतलब की यारी यहाँ, मिलते गले तपाक* ️✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
गांधीजी का सन्देश
गांधीजी के बलिदान दिवस पर भावभीनी श्रद्धांजलि 🙏💐🙏💐🙏💐🙏💐🙏💐🙏💐🙏💐🙏 💐गांधीजी का सन्देश 💐 सोशल मीडिया,टीवी या फिर हो अखबार जहाँ देखो वहां दिख रहा नफरत का प्रचार शर्मिंदा हैं हम सब भूले ,गांधीजी का सन्देश ! जाति, वर्ण, धर्म पर क्यों बँट रहा मेरा देश ? गांधीजी ने चेताया, ठीक नहीं !"आँख के बदले आँख" इस नीति पर चले तो अंधा हो जाएगा स्वदेश ईर्ष्या, द्वेष ,बदले की भावना, रखो दिल से दूर चाहें कितनी मुश्किलें आएँ, रोज़ बदल कर वेश। कभी न करो जीवन के मूलभूत सिद्धांतों पर समझौता छोड़ो आवेश ! मानो लो अहिंसा का हितोपदेश वो भी कहते थे, गलत बात पर दर्ज करो विरोध कभी वहां न सर को झुकाओ, हों जहाँ गलत निर्देश सत्याग्रह और असहयोग की रणनीति ,थी बहुत ही ख़ास आत्म चेतना ,आत्मज्ञान का जन-जन में किया विकास सादगी,अहिंसा पहचान जिनकी थी,वो राष्ट्रपिता हमारे हैं ! उनके दिए ज्ञान को भूला ? किस राह चला ये देश ? अपने सिद्धांतों के लिए जिसने जान करी क़ुर्बान ! ऐसे महात्मा राष्ट्र पिता को कोटि कोटि प्रणाम। ️✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
68.दोहा
दग़ा किसी को दो नहीं, चाहे हो मजबूर करो लाख फिर कोशिशें, होता दिल से दूर ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
दुनिया
दुनिया भी क्या चीज़ है, हर पल करे मज़ाक मतलब की यारी यहाँ, मिलते गले तपाक मिलते गले तपाक, लब से टपके चाशनी लब बोलें तो जान , बात ज्यों मधुर रागिनी नित कठोर दे घाव, दिल कठपुतली नचनिया बदले सब हर रोज़, बदलती कभी न दुनिया ️✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
दूरी
दूरियाँ बढ़ गयी दिल में अगर आप क्यों मेरे करीब आते हैं क्या बच गया कोई फ़रेब आप यूँ सब्ज़बाग दिखाते हैं आपसे प्यार हमें है माना मगर धोखा बार बार नहीं खाते हैं ज़ेहन में गहरे बसे हुए हो आप क्यों नाज़ायज़ फायदा उठाते हैं रुकोगे जब तलक हमें यकीन नहीं यकीन आया तो कहोगे कि जाते हैं हम तेरे लाख राज़दार वफादार सही फिर हमसे ही राज़ क्यों छुपाते हैं आप दिखाते हैं हमें प्यार मगर ज़ख़्म फिर से हरे हो जाते हैं जब दिल ने दूरी बना ली है आप क्यों मेरे करीब आते हैं
67.दोहा
*सूरज ढलता देखकर, जागे मन में प्रीत*। *ढलते जीवन से भला,फिर क्यों हो भयभीत*।। ️✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
66.दोहा
दुश्चरित्र यदि नार है, सावधान श्रीमान कभी-कभी धन साथ ही, ले जाती हैं मान ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️