करवट

कटीं रात करवट बदल बदल 
और दिन भी कटें बेकरार से 
कैसे बचाये मुझे अब कोई 
जब हूँ मैं खुद पशोपेश में
                 कटीं रात करवट बदल बदल 
कैसे किसे अब क्या कहूँ 
ज़िंदा हूँ ,रूह निकल गयी        
वो देखता एकटक रहा 
मैं बुत बनी सी रह गयी
                  कटीं रात करवट बदल बदल 
जो था मेरे ख़्वाबों ख्यालों में 
वो दिखा नहीं मुझे दूर तक  
दर्देदिल हद से गुजर रहा 
झड़ी आँसुओं की लग गयी
                   कटीं  रात करवट बदल बदल 
 ये सिला मिला मुझे प्यार का 
कि कली कली बिखर गयी  
मेरी फूल सी ये ज़िन्दगी 
क्यों इस तरह बिखर गयी
                  कटीं  रात करवट बदल बदल 
सभी को दिलसे चाहा मगर 
कोई भी ना अपना हुआ 
मेरी आरजूएँ इस कदर 
क्यों बेवजह छितर गयी 
             कटीं रात करवट बदल बदल 
सँवारे कोई कैसे अगर   
अपना ही दुश्मन हो गया 
मुस्कराहट मेरे लबों कि क्यों  
उसके दिल की आग बन गयी
              कटीं रात करवट बदल बदल 
वो समझे खुद को शहंशाह 
मुझे कनीज़ घरद्वार की 
तू ही कर खुदा ये फैंसला 
कीमत यही है क्या प्यार की
             कटीं रात करवट बदल बदल 
लब कर लिए हैं खामोश
और सह लिया हर वार भी 
इस दर्देदिल का मैं क्या करूँ 
हर वक़्त करे फ़रियाद सी 
            कटीं रात करवट बदल बदल 

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