"खण्डहर" इमारत बुलंद थी खण्डहर बता रहे हैं मगर अब कहाँ हैं वो इमारतें बन गयीं खण्डहर खण्डहर यादों के खण्डहर ज़ज़्बातों के हर तरफ नीरव ख़ामोशी अहसास धुंधले अतीत का नश्वरता क्षणभंगुरता का मगर चेता रही हैं हमें है एक एक क्षण कीमती हर पल जियो भरपूर जीवन खण्डहर होने से पहले मस्त नदी सा प्रवाह बिना दिल से लगाए छोटी बड़ी बातें (स्वरचित कविता) ️✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️