है मुमकिन हर दर्द रंजो गम का बोझ उठा ले कोई
नहीं मुमकिन गिरी हुई सोच को उठा लेना
है मुमकिन किसी रिश्ते में प्यार के बगैर रहे कोई
नहीं मुमकिन विश्वास के बगैर रहना
मगर रहते हैं कुछ लोग प्यार विश्वास के बिना भी
इसी को कहते हैं रब की मर्ज़ी को निभा लेना
फ़क़ीर लगते नहीं ये लोग, होते हैं उन जैसे ही दीवाने
झट रब की मर्ज़ी में, अपनी मर्ज़ी मिला लेना
मुमकिन है मिटा दो यादों का, कारवां तुम ज़ेहन से यारा
नहीं मुमकिन हमें, अपने दिल से मिटा देना
️✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
Seema Kaushik is a poet based in Faridabad, India. She is an engineering graduate, who spent most of her life as a homemaker. After being forced to live according to society’s rules, she has finally discovered her voice in her 50s. Now, she writes to be free.
View all posts by seemakaushikmukt
Lovely inspiring poem
LikeLiked by 1 person
हार्दिक धन्यवाद ! सस्नेह आभार ! 💐❤️💐🙏
LikeLike
Waah!
LikeLike
thanks a lot !
LikeLike
बेहतरीन अभिव्यक्ति 👌🏼👌🏼रूह छूने वाली
मगर रहते हैं कुछ लोग प्यार विश्वास के बिना भी इसी को कहते हैं रब की मर्ज़ी को निभा लेना👏👏🤗
LikeLike
हार्दिक धन्यवाद !सस्नेह आभार ! 💐❤️💐🙏
LikeLike