1.गद्य गीत

एक संयुक्त परिवार था 
सब कुछ अच्छा था 
प्यार भी सच्चा था 
सब अपने थे 
पूरे हुए सपने थे 
पत्नी बच्चों को पालने और 
घर के कामों में व्यस्त 
पति अपने कामधंधे में व्यस्त 
एक दिन पति घर आया 
जैसे घर में भूचाल आया 
वो बेवजह चीखा और चिल्लाया 
अपनी बीवी को सबके 
सामने नीचा दिखाया 
मीनमेख निकालीं कमियाँ गिनाईं
बीवी सोचती रही, 'गलती कहाँ हुई भाई '   
वो समझी नहीं उसकी नज़र चोर है 
उसकी निग़ाह में अब कोई और है 
वो नशे में चूर था 
नशा कमाने का 
नशा बहुत कुछ पाने का 
वो क़ामयाबी पचा नहीं पा रहा था  
जो पत्नी के सहयोग से पा रहा था 
पत्नी जो माँ थी जिसे थी परवाह जहाँ की 
मुश्किल था अकेले जीवन बिताना 
ज़िम्मेदारियों को पूरा करना 
वो थी माँ, पिता नहीं 
पति के साये में रहना ज़रूरी 
ये सीख कानों में गूंजती रही 
और वो सहती रही सब अपमान 
कुचल गया स्वाभिमान 
और फिर वक़्त बीत गया
 बच्चे बड़े हुए, पिंजरा खुला 
बच्चे पिंजरे से निकल गए 
लेकिन वो फिर भी वहीँ खड़ी थी
मगरूर साथी का सहारा बनकर 
क्यों? क्या प्यार के लिए ? 
समाज के लिए?पति बच्चों के लिए ?
या माँ बाप की इज़्ज़त के लिए ?
उसकी ये कमज़ोरी किसकी देन है ?
आज उसका ख़ुद से, सबसे, यही सवाल !  

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