कौन किसी की अब सुने, सभी तरफ बेहाल सच की अब किसको पड़ी, जीना हुआ मुहाल ️✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
Month: February 2022
90.दोहा
उतना कर सबके लिए, लगे न खुद को भार करते जो खुद को भुला, हो जाता बेकार ️✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
अनमोल
ये कविता उन सभी बच्चों को समर्पित जो हमसफ़र के लिए सुंदरता को अहम् स्थान देते हैं और बाद में ख़ुद को विषम परिस्थिति में घिरा पाते हैं ........... चेहरे बदन की ख़ूबसूरती, सराही जाती है यदि सीरत की भी ख़ूबसूरती, अब सराही जानी चाहिए कोई पैसे पर ही रखे निग़ाह, ये गलत है हुज़ूर सच्चे प्यार की कीमत ही, अनमोल होनी चाहिए चले गए ज़माने, कागज़ी ख़ूबसूरती के जहान से पुरज़ोर मेहनत की भी तो, कद्र्दानी होनी चाहिए ख़्वाबों से ही नहीं चलती, ये दुनियाँ सुन यार मेरे ख़्वाबों के लिए ज़मीनी, हक़ीक़त नहीं खोनी चाहिए क्षणिक सुख आत्मिक सुख, के आगे गौण है सर्वदा आत्मिक सुख का दाम, सदा अनमोल होना चाहिए ️✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
खण्डहर
"खण्डहर" इमारत बुलंद थी खण्डहर बता रहे हैं मगर अब कहाँ हैं वो इमारतें बन गयीं खण्डहर खण्डहर यादों के खण्डहर ज़ज़्बातों के हर तरफ नीरव ख़ामोशी अहसास धुंधले अतीत का नश्वरता क्षणभंगुरता का मगर चेता रही हैं हमें है एक एक क्षण कीमती हर पल जियो भरपूर जीवन खण्डहर होने से पहले मस्त नदी सा प्रवाह बिना दिल से लगाए छोटी बड़ी बातें (स्वरचित कविता) ️✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
सरमाया
माँ बाप जाएंगे या चले गए , छुड़ा के अपना हाथ सीखें और यादों का सरमाया, तो सदा रहेगा साथ ️✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
मुकम्मल
नहीं मुमकिन इस जहाँ में कुछ भी मुकम्मल पाना मुकम्मल तो सिर्फ रब 'था' 'है' और 'रहेगा' जो अपनाये एक दूसरे की कमी को समझ के अपना मुकद्दर का सिकंदर सिर्फ वही रहेगा
सुरमयी शाम
सुरमयी शाम इंतज़ार में हर लम्हा तेरे प्यार का अहसास हर लम्हा सात सुरों की महफ़िल सजाई है इंतज़ार में धड़का दिल हर लम्हा सुरमयी शाम इंतज़ार में हर लम्हा कोई कहता रहे हमें अब कुछ भी दिल करे है तुम से बात हर लम्हा हम हाथों में हाथ लिए बैठे हों सुलगें मीठे जज़्बात हर लम्हा सुरमयी शाम इंतज़ार में हर लम्हा हसीं पलकों पर शाम सजाई है आजा अब जान पे बन आयी है सराबोर हो जाएँ प्यार के रंगों से दिल से दिल की बात हर लम्हा सुरमयी शाम इंतज़ार में हर लम्हा ️
तपिश
सब कुछ कह कर भी कुछ न कहना भीड़ में भी वीरान के सहारे ही रहना विरह दर्द में ...गर...सुलगे तन मन दिल की तपिश को चुप चुप ही सहना
मौसम
ये मौसम आये गये, उमर गयी ये बीत ऐसा क्यों अनुभव तुझे, रहा न कोई मीत रहा न कोई मीत, छेड़ तू नया तराना छोड़ न करना प्रीत, तुझे तो प्यार निभाना प्यार निभा कर देख, सच्ची ख़ुशी तू पाये मिट जाए सब मगर, प्यार दिल में रह जाये
साथ
वो थोड़ी देर का साथ तुम्हारा, जीवन को महकाए है
वो मीठी-सी आवाज़ लगाना, दिल को भी तड़पाये है
तुम बस गए हो जाना मेरी, रूह में भी और साँसों में
वो बातों-बातों में तेरा छेड़ना, मीठी कसक जगाये है