अन्तरमुखी

कितनी कोशिश रहती है पर कुछ कह नहीं पाती हूँ 
लिखते लिखते फिर भी मैं अक्सर कह ही जाती हूँ 
अन्तरमुखी ..रही हूँ मैं तो ....पूरा जीवन बीत गया 
पर जाने क्यों अब तो मैं सब कुछ कहना चाहती हूँ 

विश्वास

अँधेरे में कहीं ए दोस्त, यूँ ही गुम हो न जाना तुम 
गम जितने भी हो चाहें, हरदम मुस्कुराना तुम 
विश्वास किसी पर भी, रहे न रहे मेरे हमदम 
विश्वास बना रहे खुद पर, ये न भूल जाना तुम 

	

इश्क़

ए इश्क़ हमें भी देख ज़रा 
हम पलकें बिछाये बैठे हैं 
हँस कर देख ले एक नज़र 
हम जान लुटाये बैठे हैं
     ए इश्क़ हमें भी देख ज़रा 
     हम पलकें बिछाये बैठे हैं 

सूना सूना मन का अँगना 
सूनी सूनी दिल की गलियाँ   
सूनी आँखें तकती राह तेरी 
हम ख्वाब सजाये बैठे हैं
    ए इश्क़ हमें भी देख ज़रा 
    हम पलकें बिछाये बैठे हैं 

क्या है जीना इश्क़ बिना 
क्या है मरना इश्क़ बिना 
है इश्क़ इबादत अब मेरी 
हम हाथ उठाये बैठे हैं
     ए इश्क़ हमें भी देख ज़रा 
     हम पलकें बिछाये बैठे हैं 

यूँ इतराना तेरा कैसा 
यूँ इठलाना तेरा कैसा 
जीना नहीं यारा तेरे बिना  
हम आस लगाए बैठे हैं 
    ए इश्क़ हमें भी देख ज़रा 
    हम पलकें बिछाये बैठे हैं 

तेरा गम का है रिश्ता सही 
तेरे साथ है गम मंज़ूर हमें 
तुझ से कैसी पर्दादारी 
हम साथ निभाए बैठे हैं 
    ए इश्क़ हमें भी देख ज़रा 
    हम पलकें बिछाये बैठे हैं 
              ️✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️ 


भँवरे तितलियाँ

भँवरे व तितलियाँ कईं, किस्म किस्म के फूल

रूप बदलता प्यार का, प्यार वफ़ा न उसूल

प्यार वफ़ा न उसूल, बात ये बिलकुल सच्ची

प्यार का है उतार, हो उम्र बड़ी या कच्ची

नहीं प्यार ये मान, न इससे जीवन सँवरे

सदा रहें न साथ, उड़ते तितलियाँ भँवरे