जितना जानते रहे सब झूठा लगता रहा कैसा था ज़ुनून सब सच्चा ही लगता रहा सारी उम्र मेरी निकलती इसी भ्रम में रही अंतिम वक़्त तक हमें सब अपना लगता रहा
जितना जानते रहे सब झूठा लगता रहा कैसा था ज़ुनून सब सच्चा ही लगता रहा सारी उम्र मेरी निकलती इसी भ्रम में रही अंतिम वक़्त तक हमें सब अपना लगता रहा