बदली जमाने की हवा, फ़िज़ाएँ बदल गयीं
अपने गए बदल, उनकी निगाहें, बदल गयीं
खामोशियाँ हर तरफ, ज़ोर तन्हाईयों का है
दिल नहीं बदला, दिल की सदायें, बदल गयीं
सब आजकल कहते, अजी उम्र है सिर्फ नंबर
एल्बम उठा के, देखा तो मिला, नस्लें बदल गयीं
हमने कहा कब की हमें, पसंद करिये हुज़ूर
जब लगने लगा, अच्छा, तुम्हारी पसंद बदल गयी
दुनिया को बहुत समझाया, करते थे यार हम
जब समझ आया हमें, जब दुनिया बदल गयीं
वो कहता था सीखो, अभी कुछ न आता तुम्हें
हम सीख गए हैं,, तो पूछे है, तुम क्यों बदल गयीं
हमने अपने बारे में नहीं सोचा था कभी यार
ज़रा सा सोचा तो, कहे है, तुम क्यों बदल गयीं
Seema Kaushik is a poet based in Faridabad, India. She is an engineering graduate, who spent most of her life as a homemaker. After being forced to live according to society’s rules, she has finally discovered her voice in her 50s. Now, she writes to be free.
View all posts by seemakaushikmukt
Very nice👍
LikeLike
thank you so much ! 🙂
LikeLike