बदली जमाने की हवा, फ़िज़ाएँ बदल गयीं
अपने गए बदल, निगाहें बदल गयीं
हरतरफ खामोशियाँ, तन्हाईयों का ज़ोर
दिल नहीं बदला ! सदायें बदल गयीं
सब आजकल कहते, अजी उम्र है नंबर
एल्बम उठा के देखा, तो नस्लें बदल गयीं
हमने कब कहा हमें, करिये पसंद हुज़ूर
भाने लगा हमें तो क्यों, पसंद बदल गयी
दुनिया को बहुत, समझाया हमने यार
समझ आया जब हमें, दुनिया बदल गयी
वो कहता था सीखो अभी, कुछ आता न तुम्हें
सीखे तो है सवाल कि तुम क्यों बदल गयीं
✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त'
Seema Kaushik is a poet based in Faridabad, India. She is an engineering graduate, who spent most of her life as a homemaker. After being forced to live according to society’s rules, she has finally discovered her voice in her 50s. Now, she writes to be free.
View all posts by seemakaushikmukt
Very nice👍
LikeLike
thank you so much ! 🙂
LikeLike