मैं ज़िंदा हूँ बस इंतज़ार में हूँ तेरे तबस्सुम तेरी याद में हूँ देख ले इक बार मेरी तरफ तेरी वफ़ा के इंतज़ार में हूँ कौन कहे तुझमें वफ़ा नहीं कौन जाने तेरी पेचीदगियाँ अभी तक याद है ज़ुल्म यारा तेरे प्यार के इंतज़ार में हूँ हरबार इक नया दग़ा तेरा हरबार इक नया ज़ख्म तेरा फिर भी साथ हूँ सालों से क्या अपने क़त्ल के इंतज़ार में हूँ या तेरे रहमोकरम के इंतज़ार में हूँ मैं ज़िंदा हूँ बस तेरे इंतज़ार में हूँ
बेहतरीन … ! 👌
बेरुखी के दर्द की बड़ी गहरी अदायगी… ! 👌 👌
वही समझ पाये जिसने हो कभी देखी …! 👌👌👌
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मगर अगर हुई है तो ये बेरुखी हुई क्यों ???
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मेरे काव्य से हृदय से जुड़ने के लिए आभार ! कुछ भी हम निर्धारित नहीं करते ,कभी कभी ऐसा लगता है।
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