*मुबारक बैसाखी त्यौहार, चल भंगड़ा डालो यार*
*मेरे देश की पावन मिट्टी, देती है नित उपहार*
*मेहनत का इनाम है देती, है भरे खूब भण्डार*
*फसलें पकें खेत में तभी, चेहरों पर आती रौनक*
*नृत्य संगीत लौटे जीवन में, हों खुशियाँ बेशुमार*
*मुबारक बैसाखी त्यौहार, चल भंगड़ा डालो यार*
*गूँजा लोकगीतों से देखो धरती और आसमान*
*फसल कटे धन मिले तभी, सब पहने नवीन परिधान*
*नित उत्सव होते फिर घरों में जमती शाम-ए-महफ़िल*
*नाचे मनमयूर देख के विभिन्न मधुर सरस पकवान*
*मुबारक बैसाखी त्यौहार, चल भंगड़ा डालो यार*
✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
Seema Kaushik is a poet based in Faridabad, India. She is an engineering graduate, who spent most of her life as a homemaker. After being forced to live according to society’s rules, she has finally discovered her voice in her 50s. Now, she writes to be free.
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