135.दोहा

कमी बताना तुम कभी, सदा जहाँ एकांत। 
कहे न सबके बीच में  ,कोई भी संभ्रांत।।
           ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️

मन के घाव

शरीर  ही  नहीं  मन के  घाव  भरने  में  वक़्त  तो  लगता है 
उफ़ !मुरझाये दिल को फिर से खिलने में वक़्त तो लगता है 
आप  कहें  और  हम  मुस्कुरा  दें  कोई  मशीन  नहीं है  हम
फिर गले  लगाने में  जीवन को  थोड़ा  वक़्त  तो  लगता  है 
           ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️